फिर उधर से आवाज आई “ललित भाई मैं समीर लाल बोल रहा हूँ. ”
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उस लेखक की फितरत जानता था जिसके विषय में डॉक्टर लाल बोल रहे थे.
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के लाल बोल के धमक के साथ कभी न जी पाए अपने सपनों की ठंडी बावड़ी में उतर
7.
“अरे, चाचू दिख नहीं रहे, जल?दी लो..? हमने फिर आ?खे अखबार में गडा दी और मोबाइल कान पर रखा.?हेलो…??हेलो.. मैं समीर लाल बोल रहा हू??
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सब सुहाग के लाल बोल के धमक के साथ कभी न जी पाए अपने सपनों की ठंडी बावड़ी में उतर गई थी, बावली में उतर कर और छबक-छबक ठंडे पानी का मीठा सा आनन्द ले रही थीं।
9.
मैं आपके आह्लाद की अनुभूति कर सकता हूँ क्योंकि अभी कुछ दिनं पहले ही मैं भी ऐसे ही आह्लाद भरे क्षणों से गुजरा हूँ-एक बहुत ही लाऊड एंड क्लियर अनौपचारिक सी आवाज ने मुझे भी सहसा सर्वान्गरूपेण सचेष्ट कर दिया था-मैं समीर लाल बोल रहा हूँ!